यदि कोई बैंक में आपका चेक dishonour कर देता है (जैसे insufficient funds या account closed), तो यह भारत में एक गंभीर मामला बन सकता है — खासकर जब चेक देयता (debt/liability) के भुगतान के लिए दिया गया हो। ऐसे मामलों में आमतौर पर Section 138 of the Negotiable Instruments Act लागू होता है।
Section 138 — सजा (Punishment)
कानून के अंतर्गत चेक dishonour एक अपराध माना जाता है। दोषी पाए जाने पर सहायक सजा में अधिकतम 2 साल तक की जेल हो सकती है या चेक राशि तक दोगुना जुर्माना (या दोनों) लगाया जा सकता है। यह दंड सीधे कानून में निर्धारित है।
प्रक्रिया — नोटिस, समय-सीमा और शिकायत दायर करना
1. बैंक से सूचना मिलने के बाद नोटिस देना (Demand Notice)
- जब चेक बाउंस होता है, बैंक द्वारा आपको/पेयee को रिटर्न मेमो मिलता है।
- पेयee को उस सूचना प्राप्ति के 30 दिनों के भीतर लिखित नोटिस देकर भुगतान की मांग करनी होती है।
यह नोटिस Section 138 का आवश्यक प्रावधान है — नोटिस न देने पर शिक़ायत स्वीकार नहीं होती।
2. नोटिस पर 15 दिनों का ग्रेस-पीरियड
नोटिस भेजने के बाद ड्रॉअर (जिसने चेक दिया) के पास भुगतान करने के लिए 15 दिन का समय होता है। यदि वह राशि नहीं देता तो पेयी अपराध के लिए आगे बढ़ सकता है।
3. शिकायत (Complaint) दायर करने की समय-सीमा
अगर 15 दिनों के भीतर भुगतान नहीं किया गया तो पेयी को उस अवधि समाप्त होने के बाद एक महीने (30 दिन) के भीतर स्थानीय मजिस्ट्रेट के समक्ष दंडात्मक शिकायत दायर करनी होती है। यह समय-सीमा कोर्ट में मामला सुनने के लिए महत्वपूर्ण है।
न्यायिक व्यवहार और उदाहरण
उच्च न्यायालयों व निम्न अदालतों में Section 138 के तहत कड़े निर्णय आए हैं — कुछ मामलों में दो साल तक की सज़ा भी सुनाई गई है, खासकर जहाँ भुगतान का दावा बड़ा था और नोटिस के बावजूद भुगतान टला गया। (न्यायालय के ताज़ा उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि अदालतें इस अपराध को गंभीरता से लेती हैं)।
नागरिक (Civil) उपाय और आपस में निपटारा
- चेक बाउंस के साथ-साथ पेयी सिविल रिवकवरी (recovery suit) भी दायर कर सकता है जिससे मूल राशि की वसूली की जा सके।
- कई बार पक्ष आपसी समझौते (compromise/settlement) कर लेते हैं और मामला अदालत तक नहीं जाता।
संक्षिप्त बचाव-दलीलें (Defences)
ड्रॉअर के पक्ष में कुछ सामान्य रक्षा-बिंदु होते हैं, जिनका इस्तेमाल कानूनी रणनीति में किया जा सकता है — उदाहरण: (a) चेक ऋण/देयता के लिए नहीं था; (b) नोटिस विधिवत नहीं भेजा गया; (c) बैंक ने चेक प्रस्तुत करने का समय/प्रमाण ठीक तरह से नहीं रखा; या (d) दस्तावेज़ी प्रमाणों में खामी। पर ये दलीलें अदालत के समक्ष परखी जाती हैं।
उपाय और सुझाव (Practical tips)
- चेक जारी करते समय खाते में पर्याप्त बैलेंस रखें और पोस्ट-डेटेड चेक का ट्रैक रखें।
- यदि बैंक से चेक रिटर्न सूचना मिलती है तो शीघ्र नोटिस पर विचार करें और यदि गलतफहमी हो तो संवाद कर लें।
- नोटिस मिलने पर 15 दिनों में भुगतान कर देना ही सर्वोत्तम है — इससे आप अपराध और जुर्माने से बच सकते हैं।
- मामला जटिल होने पर अनुभवी वकील से परामर्श लें; अनेक मामलों में समझौता व वसूली अधिक व्यावहारिक होता है।
निष्कर्ष
चेक बाउंस (Section 138) केवल सिविल मुद्दा नहीं — यह आपराधिक परिणाम भी ला सकता है। कानून स्पष्ट रूप से नोटिस-प्रक्रिया और समय-सीमाओं का पालन माँगता है; उल्लंघन पर सज़ा और जुर्माना दोनों हो सकते हैं। समय पर नोटिस का जवाब देना और कानूनी सलाह लेना दोनों ही महत्वपूर्ण कदम हैं।